in India by रिगजिन लुन्दुप लामा" width="192" height="300" />
4 ग पर भी प्रकाश पढ़ेगा । तारानाथ को पुस्तक में सिंद्धों आरा सिद्धियों का प्रदर्शन किये जाने के जो उल्लेख यत्रन्तत मिलते है उन्हें इस््जात को संज्ञा देता उचित नहीं हू । हम उन्हें ऊद्ि या झाध्यात्मिक वाक्तिन्यरदरशन कह सकते हूँ । मंदि हम चमत्कारपूरण बातों से भौत-प्रौोत तारानाथ-कृत प्रस्तुत इतिहास को प्रामाशिकता को नहीं मानते तो रामागयथ सौर गीता जे से हिनुमों को पवि्रतम पंधों का भी विश्वास नहीं किया जा सकता । तायानाथ साधारगतया पश्चिम पूर्व सौर मध्य भाग के महत्वपूर्ण राज्यों पौर शासकों के संक्षिप्त वर्गन से आारम्न करते हूं और तब उन नुंपों के शासनकाल में बौद्षमं की सेवा में सम्पादित संत्कायों भर प्रसिड बौद्ध भ्रातायों का विस्तुत वर्णन प्रस्तुत करते हूँ जिन्होंने बौद्ध शासकों का राजाभम पाकर बौद्घर्म का प्रचार एवं विकास कियां था । विशेषता तारानाथ से सदां उन राजापों का हो बर्तन करने में अभिरुचि दिखायी हैं जिनके शासतकालें में बौद्धपर्म को पेस्ट राजोबय मिला था । भारत में विभिन्न कालों में शआदुमू त बौद्ध झावायों सिद्धों सिद्धास्तों औौर भामिक संस्थाभों को विस्तुत बन करना उनका उदय था । इस श्कार उन्होंने बहुत बड़े परिमोण में परम्परागत भारतीय वौद्घनं सम्बत्धी कघातकों इतिहासों . सौर राजनीतिक इतिहासों को सुरक्षित रखा हूँ । झतएव यहू पुस्तक भारतीय वौद्धघमं के इतिहासों में एक. गृस्त्वपूर्ण स्यान रखती हूँ । तारानाय नें धपनी पुस्तक में अधिकतर ऐतिहासिक तस्यों को क्षेमेन्द और भटगटी के इन्ददतत से उडत फिया हूँ । इतकी पुस्तक में वशित कतिपय शावार्यों के नामों का रूप बदल दिया गया हूँ । जंसे कृष्णवारिन के स्वानं पर बाद बॉ. तिव्वतो लेखर्कों ने कालाचार्य रखा हू. भर वियुंदेव की. जमसेह मसिल्यातदेव थोव-यिंग ०. य11 ए- 3245 । सुरेन्दवोधि के स्थान पर देवं्ददुद्धि संपिक उपयुक्त मानां गया भौर बुददिश के स्वान पर बुद्धक्ष । तारातावं के इतिहास में और भी प्रनेक एसे सूप हूँ जँसे विक्रमणिला के स्थान पर विक्रमशील भौर कहों-कहों विक्षमलशील । तिव्वती में भी ठीक विकमशौल का रूपान्तर कर नंमन्युनोन- छुत्त लिखा गया हैँ । भारतीय इति होपों में तुलनात्मक शव्ययन करने से पता सगता हूं कि तारानाव की पुस्तक से राजाएों कर स्थानों के वर्णन में मंष-तथ कुछ गत्तत एंतिहासिक सूचनाय मिलती हैं । लेकिन जहाँ तक भारतीय बौद्ध धानापों का सम्बन्ब हूं एंसा विस्तुत भौर विशद् वर्णन कदाचित ही किसी नी भारतीय इतिहास में उपलब्ध हो । पतः यह पुस्तक उन प्रभावों की शम्यूत्ति करने में संशनत रहेगी । मेने इस पुस्तक में प्रयुक्त पारिनाधिक वाब्दों को व्याख्या सहित पादटिप्पगी में दें दिया हूँ भर शब्यानृकमणिका मेँ भारतीय नामों भोर घब्दों को तिस्वती के साथ दिया हैं ।
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